भगवान विष्णु का दूसरा अवतार: कूर्म (दिव्य कछुआ अवतार)

कूर्म(दिव्य कछुआ अवतार):

पौराणिक पृष्ठभूमि एवं अवतार का कारण

हिन्दू धर्म के अनुसार, भगवान विष्णु जगत के पालनहार हैं और जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब वे अवतार लेकर संसार में अधर्म का नाश करते हैं। उनके दस प्रमुख अवतारों में से दूसरा अवतार कूर्म (कछुआ) है, जिसका विशेष महत्व समुद्र मंथन (क्षीरसागर मंथन) की घटना से जुड़ा है। यह घटना विष्णु पुराण, महाभारत तथा भागवत पुराण में विस्तार से वर्णित है।

समुद्र मंथन की आवश्यकता तब पड़ी जब देवताओं (सुरों) और असुरों (दैत्यों) के बीच अमरत्व प्राप्त करने की होड़ शुरू हुई। एक समय ऐसा आया जब असुरों के अत्याचार से देवता कमजोर हो गए और उन्हें अपनी शक्ति वापस पाने के लिए अमृत की आवश्यकता हुई। लेकिन अमृत प्राप्त करने के लिए क्षीरसागर (दूधिया समुद्र) का मंथन करना आवश्यक था। इस कार्य के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया और नागराज वासुकि को रस्सी की तरह प्रयोग किया गया। किंतु, मंथन के दौरान पर्वत का भार संभालने के लिए कोई आधार न होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। तब भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुआ) का रूप धारण किया और अपनी विशाल पीठ पर मंदराचल को संभाला, जिससे समुद्र मंथन संभव हो सका।


समुद्र मंथन की प्रक्रिया एवं कूर्म अवतार की भूमिका

कूर्म अवतार की सहायता से देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र का मंथन शुरू किया। इस प्रक्रिया में अनेक दिव्य वस्तुएँ प्रकट हुईं, जिनमें प्रमुख हैं:

  1. कामधेनु गाय – इच्छाओं की पूर्ति करने वाली दिव्य गाय।

  2. उच्चैश्रवा घोड़ा – सफेद रंग का स्वर्गीय अश्व।

  3. ऐरावत हाथी – इंद्र का वाहन बना।

  4. कौस्तुभ मणि – विष्णु के हार की शोभा बढ़ाने वाली मणि।

  5. पारिजात वृक्ष – स्वर्गीय पुष्पों वाला वृक्ष।

  6. लक्ष्मी – धन और समृद्धि की देवी, जिन्होंने विष्णु को वरमाला पहनाई।

  7. धन्वंतरि – आयुर्वेद के देवता, जो अमृत कलश लेकर प्रकट हुए।

जब अमृत प्राप्त हुआ, तो असुरों ने छल से उसे हड़पने का प्रयास किया। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं को अमृत पिलाया और असुरों को धोखे से वंचित कर दिया। इस प्रकार, कूर्म अवतार ने न केवल समुद्र मंथन को संभव बनाया, बल्कि देवताओं की शक्ति को पुनर्स्थापित कर संसार में धर्म की स्थापना की।

 


कूर्म अवतार का दार्शनिक एवं आध्यात्मिक महत्व

  1. धैर्य एवं स्थिरता का प्रतीक – कछुआ धीमी गति से चलता है, किंतु अपने लक्ष्य से कभी विचलित नहीं होता। यह मनुष्य को सिखाता है कि जीवन में सफलता के लिए धैर्य और निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।

  2. सहयोग एवं संतुलन का संदेश – समुद्र मंथन में देव और दानव दोनों ने मिलकर काम किया, जो यह दर्शाता है कि बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सहयोग आवश्यक है।

  3. विष्णु का संरक्षक स्वरूप – कूर्म अवतार विष्णु के उस पहलू को दर्शाता है, जो संकट के समय सृष्टि को संभालता है।

  4. अमृत की खोज – यह घटना मनुष्य के आंतरिक विकास की प्रक्रिया को दर्शाती है। जिस प्रकार समुद्र मंथन से अमृत निकला, उसी प्रकार मनुष्य को भी आत्म-साधना द्वारा जीवन का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त करना चाहिए।


कूर्म अवतार की पूजा एवं प्रसिद्ध मंदिर

हालाँकि कूर्म अवतार की पूजा विष्णु के अन्य अवतारों (जैसे राम, कृष्ण) की तुलना में कम प्रचलित है, फिर भी कुछ मंदिरों में इसका विशेष महत्व है।

  • श्री कूर्म मंदिर, आंध्र प्रदेश – यहाँ भगवान कूर्म की मूर्ति विराजमान है।

  • जगन्नाथ पुरी मंदिर, ओडिशा – यहाँ समुद्र मंथन की घटना को दर्शाया गया है।


निष्कर्ष

कूर्म अवतार केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन के लिए एक गहन शिक्षा है। यह हमें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य, सहनशीलता और दृढ़ संकल्प से सफलता प्राप्त की जा सकती है। भगवान विष्णु का यह अवतार सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने और धर्म की रक्षा करने का प्रतीक है, जो आज भी प्रासंगिक है|

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