ईस शहर में बीएमसी ने पूजा सामग्री के टनों कचरे को इको-फ्रेंडली(eco-friendly) उत्पादों में बदलकर रचा इतिहास

भोपाल, मध्य प्रदेश – एक ऐसी पहल जो धार्मिक आस्था और पर्यावरणीय जिम्मेदारी को एक साथ लाती है, भोपाल नगर निगम (बीएमसी) ने त्योहारों के दौरान उत्पन्न होने वाले पूजा सामग्री के कचरे की विशाल चुनौती से निपटने के लिए एक अभूतपूर्व(इको-फ्रेंडली)  प्रोजेक्ट शुरू किया है। हाल ही में दुर्गा पूजा समाप्ति के बाद, बीएमसी ने शहर भर के लगभग 2,000 पंडालों से एकत्र किए गए पूजा सामग्री के टनों कचरे का वैज्ञानिक तरीके से प्रसंस्करण करने का सफल प्रयास किया है। इसके तहत प्रदूषण फैलाने वाले इस कचरे को उपयोगी, पर्यावरण-हितैषी उत्पादों में बदला जा रहा है। यह प्रोजेक्ट सिर्फ एक कचरा प्रबंधन अभियान नहीं, बल्कि शहरी स्थिरता का एक समग्र मॉडल है, जिसे अब देश के अन्य शहर भी अपनाने की ओर देख रहे हैं।

चुनौती का पैमाना: आस्था और कचरे का त्योहार

भोपाल जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर में दुर्गा पूजा, गणेशोत्सव और विसर्जन जैसे त्योहार बेहद उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। यह उत्सव आस्था और सामुदायिकता की जीवंत अभिव्यक्ति तो हैं ही, लेकिन साथ ही ये पूजन सामग्री के रूप में भारी मात्रा में कचरा भी पैदा करते हैं। इनमें फूल, पत्तियां, केले के तने, कपड़े, अगरबत्तियां, नारियल और सजावटी सामग्री जैसी विविध वस्तुएं शामिल होती हैं।

 

पारंपरिक रूप से, इस जैविक और अजैविक कचरे का एक बड़ा हिस्सा लैंडफिल साइट्स पर या, इससे भी बदतर, शहर की ऊपरी और निचली झीलों जैसे जलाशयों में पहुंच जाता था। फूलों में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक रंग और प्लास्टिक तथा प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां जल और मिट्टी प्रदूषण का गंभीर कारण बनती थीं, जिससे जलीय जीवन को नुकसान पहुंचता था और पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता था। बीएमसी ने पहचाना कि त्योहारों के दौरान उत्पन्न इस विशेष कचरे का प्रबंधन शहर के पर्यावरण, विशेष रूप से इसकी अनमोल झीलों को बचाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

बीएमसी की दूरदर्शिता: पूजन सामग्री से टिकाऊ उत्पादों तक

बीएमसी की यह पहल एक सुनियोजित, बहु-चरणीय प्रक्रिया है, जो त्योहार समाप्त होने से कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है। इसका मुख्य लक्ष्य एक चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकॉनमी) तैयार करना है, जहां कचरे को अंतिम उत्पाद न मानकर एक मूल्यवान संसाधन के रूप में देखा जाए।

1. संग्रह अभियान: एक व्यवस्थित दृष्टिकोण
सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है कचरे का सुचारू संग्रह। बीएमसी ने शहर भर में लगभग 2,000 दुर्गा पूजा पंडालों की पहचान करके उनका मानचित्र तैयार किया। विसर्जन प्रक्रिया से पहले, निगम ने एक जागरूकता अभियान चलाया, जिसमें भक्तों और पंडाल समितियों से स्रोत पर ही कचरे को अलग-अलग करने का अनुरोध किया गया। विशेष वाहनों के साथ तैनात बीएमसी की टीमों को पहले से निर्धारित मार्गों पर इन स्थानों से सीधे कचरा एकत्र करने के लिए लगाया गया। इस ‘पंडाल-टू-पंडाल’ संग्रह ने यह सुनिश्चित किया कि कचरा सामान्य नगरपालिका के ठोस कचरे के साथ न मिले, जिससे प्रभावी प्रसंस्करण के लिए उसकी शुद्धता बनी रहे।

2. परिवहन और छंटाई: सॉर्टिंग हब
एत्र किए गए कचरे को केंद्रीकृत छंटाई केंद्रों या मटेरियल रिकवरी सुविधाओं पर ले जाया गया। यहां, श्रमिकों की टीमों ने सावधानीपूर्वक हाथ से छंटाई का काम किया। कचरे को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया:

  • जैविक कचरा: इसमें फूल, पत्तियां, फल, केले के तने और नारियल की भूसी शामिल हैं।

  • अजैविक कचरा: इसमें प्लास्टिक के गहने, कपड़े, सजावटी सामान और अन्य सिंथेटिक सामग्री शामिल हैं।

यह छंटाई पूरे प्रोजेक्ट की रीढ़ की हड्डी है, क्योंकि यह अंतिम पुनर्नवीनीकृत उत्पादों की गुणवत्ता और दक्षता तय करती है।

3. रूपांतरण की प्रक्रिया: विज्ञान और स्थिरता का मेल
अलग किए गए कचरे की धाराओं को अलग-अलग वैज्ञानिक प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है, ताकि उन्हें पर्यावरण-हितैषी उत्पादों में तब्दील किया जा सके।

  • जैविक कचरे के लिए: कम्पोस्टिंग और बायोफ्यूल का जादू
    पूजा सामग्री के कचरे का बड़ा हिस्सा जैविक होता है। इस बायोमास को कम्पोस्टिंग गड्ढों या स्वचालित कम्पोस्टिंग मशीनों में भेजा जाता है। एरोबिक अपघटन के माध्यम से, इस कार्बनिक पदार्थ को उच्च-गुणवत्ता वाली, पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद या वर्मीकम्पोस्ट में बदला जाता है। इस खाद को पैक करके नागरिकों, नर्सरियों और किसानों के लिए कृषि और बागवानी हेतु उपलब्ध कराया जाता है, जिससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है।

    इसके अलावा, कुछ जैविक कचरे का उपयोग बायो-गैस संयंत्रों में भी किया जाता है। इस सामग्री के अवायवीय पाचन से बायोगैस उत्पन्न होती है, जो ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है और जिसका उपयोग खाना पकाने या बिजली उत्पादन के लिए किया जा सकता है। साथ ही, इससे उत्कृष्ट जैविक उर्वरक भी प्राप्त होता है।

  • अजैविक कचरे के लिए: अपसाइक्लिंग और रिसाइक्लिंग की कला
    अजैविक सामग्रियों को फेंका नहीं जाता। मूर्तियों के कपड़ों जैसी वस्तुओं को साफ करके पुनः उपयोग में लाया जाता है। प्लास्टिक और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों को रिसाइक्लिंग यूनिट्स में भेजा जाता है, जहां उन्हें नए उत्पाद बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में संसाधित किया जाता है। बीएमसी ने स्थानीय कारीगरों और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के साथ साझेदारी करके इस कचरे को रचनात्मक तरीके से अपसाइकल किया है, जैसे कि पेपर बैग, सजावटी सामान और अन्य उपयोगी उत्पाद बनाकर। इससे लोगों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बल मिल रहा है।

प्रभाव: पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक लाभ

इस पहल की सफलता का आकलन इसके बहुआयामी प्रभाव से किया जा सकता है:

  1. पर्यावरण संरक्षण: यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। हजारों टन कचरे को लैंडफिल और जल निकायों में जाने से रोककर, बीएमसी ने भोपाल की झीलों में जल प्रदूषण कम करने, लैंडफिल से होने वाली ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने और मिट्टी के स्वास्थ्य के संरक्षण में सीधे योगदान दिया है। यह शहर के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है।

  2. जन जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन: इस अभियान ने एक विशाल जन जागरूकता उपकरण के रूप में काम किया है। इसने नागरिकों को कचरे के अलगाव और जिम्मेदारीपूर्ण उत्सव मनाने के महत्व के बारे में शिक्षित किया है। जब भक्त अपनी पूजा की सामग्री से बनी खाद को देखते हैं, तो यह उनकी आस्था और पर्यावरणीय दायित्व के बीच एक शक्तिशाली संबंध बनाता है।

  3. आर्थिक अवसर: इस परियोजना ने कचरा संग्रह और छंटाई से लेकर खाद बनाने और उत्पाद निर्माण तक, विभिन्न स्तरों पर रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। स्वयं सहायता समूहों को अपसाइक्लिंग में शामिल करने से महिलाओं को सशक्त बनाने और स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने में मदद मिली है।

  4. एक अनुकरणीय मॉडल: बीएमसी के इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है। यह त्योहारों के मौसम में इसी तरह की चुनौतियों का सामना करने वाले देश भर के अन्य नगर निगमों के लिए एक स्पष्ट, मापनीय और अनुकरणीय रूपरेखा प्रदान करता है।

चुनौतियां और आगे का रास्ता

सफलता के बावजूद, इस पहल के सामने चुनौतियां हैं। स्रोत पर 100% छंटाई सुनिश्चित करना अभी भी मुश्किल है। कुछ भक्त अभी भी नए प्रोटोकॉल से अनजान हैं या उनका पालन करने में हिचकिचाते हैं। इसके अलावा, कचरे की बढ़ती मात्रा को संभालने के लिए प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे को और विस्तारित करने की आवश्यकता है।

बीएमसी इन चुनौतियों से निपटने के लिए अपने जागरूकता अभियानों को और तेज करने, शहर के विभिन्न क्षेत्रों में अधिक कम्पोस्टिंग यूनिट लगाने और तेज अपघटन के लिए बायो-एंजाइमेटिक उपचार जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाने की योजना बना रही है। इसका लक्ष्य वर्ष भर के सभी प्रमुख त्योहारों के लिए इस मॉडल को विस्तारित करना है, ताकि भोपाल में स्थायी उत्सव एक नई परंपरा बन सके।

निष्कर्ष: एक दैवीय रूपांतरण

भोपाल नगर निगम की यह पहल सिर्फ एक स्मार्ट कचरा प्रबंधन रणनीति से कहीं अधिक है; यह एक गहन बयान है। यह दर्शाता है कि आस्था और पर्यावरण चेतना सह-अस्तित्व में रह सकती हैं और एक-दूसरे को मजबूत कर सकती हैं। पूजन सामग्री के कचरे को पर्यावरण-हितैषी उत्पादों में बदलकर, बीएमसी न केवल शहर की सफाई कर रहा है, बल्कि ‘अर्पण’ की अवधारणा को भी शुद्ध कर रहा है – ईश्वर के प्रति भक्ति के एक कार्य को धरती की सेवा में परिवर्तित कर रहा है। ऐसा करके, भोपाल शहरी प्रशासन में एक नया अध्याय लिख रहा है, जहां टिकाऊपन शहर की सांस्कृतिक फैब्रिक में बुना हुआ है। यह साबित करता है कि सच्ची भक्ति इस पृथ्वी की रक्षा करने में निहित है, जिसे हम निवास करते हैं।

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