स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) 1947 में 200 वर्षों की ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से भारत की मुक्ति का प्रतीक है। यह दिन उन लाखों लोगों के बलिदानों को सम्मानित करता है जिन्होंने हमारी आजादी के लिए संघर्ष किया और हमें हमारे राष्ट्र की गरिमा, पर्यावरण और एकता की रक्षा करने की हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।
भारत कैसे आजाद हुआ?
1. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन (1757-1947)
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ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्लासी की लड़ाई (1757) के बाद नियंत्रण प्राप्त किया और बाद में सीधे ब्रिटिश क्राउन (1858) के अधीन भारत पर शासन किया।
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भारतीयों को आर्थिक शोषण, नस्लीय भेदभाव और क्रूर दमन का सामना करना पड़ा (जैसे, जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919)।
2. स्वतंत्रता संग्राम: प्रमुख आंदोलन और नायक
आंदोलन | वर्ष | नेता | प्रभाव |
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1857 का विद्रोह | 1857 | मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई | पहला बड़ा विद्रोह |
स्वदेशी आंदोलन | 1905 | बाल गंगाधर तिलक | भारतीय उत्पादों को बढ़ावा दिया |
असहयोग आंदोलन | 1920 | महात्मा गांधी | ब्रिटिश संस्थानों का सामूहिक बहिष्कार |
नमक मार्च (दांडी मार्च) | 1930 | गांधी, सरोजिनी नायडू | नमक कर को चुनौती, वैश्विक ध्यान आकर्षित किया |
भारत छोड़ो आंदोलन | 1942 | गांधी, नेहरू, पटेल | “करो या मरो” की अपील |
आईएनए और सुभाष चंद्र बोस | 1942-45 | नेताजी बोस | आजाद हिंद फौज के साथ सशस्त्र प्रतिरोध |
3. विभाजन और स्वतंत्रता (1947)
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15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली लेकिन इसे भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया गया।
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प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर झंडा फहराया और “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” भाषण दिया।
स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान
भारत की आज़ादी के लिए असंख्य वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिनमें महात्मा गांधी का बलिदान सर्वोपरि है। बापू ने अपना संपूर्ण जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया – 1906 में उन्होंने वकालत छोड़कर सादा जीवन अपनाया, छह वर्ष से अधिक समय जेलों में बिताया, और देश के लिए 17 बार लंबे उपवास किए, जिनमें सबसे लंबा 21 दिन का उपवास शामिल है। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे की गोली ने इस महान आत्मा को हमसे छीन लिया, परंतु उनका यह कथन आज भी प्रासंगिक है – “मैं अपने जीवन की अंतिम साँस तक भारत की सेवा करूँगा।”
क्रांति के अग्रदूत भगत सिंह ने मात्र 23 वर्ष की आयु में ही देश के लिए फाँसी का फंदा चूम लिया। 1928 में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉण्डर्स की हत्या और 1929 में असेंबली में बम फेंककर स्वयं को गिरफ्तार कराने जैसे साहसिक कार्यों के बाद उन्होंने जेल में 116 दिनों की ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। अपने अंतिम पत्र में उन्होंने लिखा था – “मेरी फाँसी से भारतीय युवाओं में क्रांति की ज्वाला जलनी चाहिए।”
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज के माध्यम से 40,000 सैनिकों को संगठित किया और “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” के उद्घोष के साथ अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। 11 वर्ष के निर्वासन और 11 बार जेल यातनाएँ सहने के बाद 18 अगस्त 1945 को उनकी रहस्यमय मृत्यु ने सम्पूर्ण राष्ट्र को स्तब्ध कर दिया।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने 17-18 जून 1858 को अंग्रेजों के विरुद्ध अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए घोड़े पर सवार होकर युद्ध किया और अंततः वीरगति प्राप्त की। उनका यह ऐतिहासिक वाक्य – “मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी!” आज भी भारतीय नारी शक्ति का प्रतीक है। चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने प्रण – “कभी गिरफ्तार नहीं होऊँगा” को निभाते हुए 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क में अंतिम गोली स्वयं को मारकर बलिदान दे दिया।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने 562 रियासतों के एकीकरण के लिए अथक परिश्रम किया और अपने पुत्र की मृत्यु जैसे दुख के समय भी देश सेवा से विमुख नहीं हुए। लाला लाजपत राय ने लाठीचार्ज में घायल होने के बाद कहा था – “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की कील साबित होगी।” खुदीराम बोस मात्र 18 वर्ष की आयु में फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी बने।
72 वर्षीया मातंगिनी हाजरा ने तिरंगा थामे गोलियाँ खाईं तो बिरसा मुंडा ने आदिवासी अधिकारों के लिए प्राण दिए। कनकलता बरुआ ने असहयोग आंदोलन में गोली खाकर इतिहास रच दिया। राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्ला खान ने काकोरी कांड में साथ-साथ फाँसी चढ़कर हिंदू-मुस्लिम एकता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया।
इन महान बलिदानियों ने हमें सिखाया कि देशप्रेम सर्वोपरि है और सच्चा बलिदान निस्वार्थ होता है। आज हमारा कर्तव्य है कि हम उनके सपनों के भारत का निर्माण करें। जैसा कि एक कवि ने कहा था – “याद रखो वो जज़्बा, याद रखो वो बलिदान… जिनकी बदौलत आज हम सब हैं आज़ाद हिंदुस्तान!”
एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमारे कर्तव्य
आजादी बड़ी कीमत पर मिली है। हमारे शहीदों को सम्मान देने के लिए हमें यह करना चाहिए:
1. पर्यावरण की रक्षा करें
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❌ प्लास्टिक का उपयोग बंद करें: यह नालियों को जाम करता है, जानवरों को नुकसान पहुंचाता है और नदियों को प्रदूषित करता है।
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विकल्प: कपड़े/जूट के बैग, स्टील की बोतलें ले जाएं।
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🗑️ यात्रा के दौरान कूड़ा न फेंकें: सड़कों/रेलवे पर कूड़ा भारत को गंदा बनाता है।
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समाधान: कूड़ेदान का उपयोग करें; स्वच्छ भारत जैसे अभियानों में शामिल हों।
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2. राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करें
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राष्ट्रगान (जन गण मन) के समय खड़े हों।
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तिरंगे झंडे का सम्मान करें (कभी भी इसे जमीन पर न गिरने दें)।
3. एकता और समानता को बढ़ावा दें
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जाति/धार्मिक भेदभाव को अस्वीकार करें।
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गरीबों की मदद करें, वंचित बच्चों को शिक्षित करें।
4. वोट दें और भ्रष्टाचार का विरोध करें
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लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए समझदारी से वोट दें।
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CPGRAMS (केंद्रीकृत जन शिकायत पोर्टल) के माध्यम से भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करें।
5. भारतीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करें
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मेड इन इंडिया उत्पाद खरीदें।
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स्थानीय कारीगरों, किसानों को बढ़ावा दें (जैसे, खादी)
निष्कर्ष: स्वतंत्रता जिम्मेदारी है
स्वतंत्रता दिवस सिर्फ एक छुट्टी नहीं है—यह भारत के मूल्यों को बनाए रखने का संकल्प है। आइए हम अपने नायकों को सम्मान दें:
✅ भारत को साफ रखकर
✅ जरूरतमंदों की मदद करके
✅ नफरत के खिलाफ एकजुट रहकर
“अपने देश से यह मत पूछो कि तुम्हारे लिए क्या कर सकता है—पूछो कि तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो।” – नेहरू