भगवदगीता एक पवित्र ग्रंथ है जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आता है। यह भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ संवाद है, जो महाभारत युद्ध के मैदान, कुरुक्षेत्र, में हुआ था।
श्लोक 2.21
“वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्॥”
अर्थ:
जो आत्मा को नाशरहित, शाश्वत, अजन्मा और अविनाशी जानता है, वह पुरुष कैसे और किसे मार सकता है या मरवा सकता है?
व्याख्या:
यह श्लोक कर्म और आत्मा की शाश्वतता पर केंद्रित है। जब कोई यह जान लेता है कि आत्मा अमर है और न मरती है न मारती है, तब उसे मृत्यु से भय नहीं होता।
उदाहरण:
जब एक सैनिक युद्धभूमि में जाता है, वह जानता है कि शरीर तो नश्वर है, पर आत्मा अमर है। यह ज्ञान उसे साहस देता है।
कब प्रयोग करें:
जब आप किसी संकट या मृत्यु के भय से जूझ रहे हों — जैसे अस्पताल में किसी अपने की गंभीर स्थिति — तब आत्मा की अमरता का यह ज्ञान मानसिक शांति और धैर्य देता है।
श्लोक 2.22
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय,
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥”
अर्थ:
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।
व्याख्या:
यह श्लोक पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्पष्ट करता है। आत्मा अमर है, शरीर मात्र एक वस्त्र है जो समय के साथ बदलता है।
उदाहरण:
अगर कोई बच्चा छोटी उम्र में मर जाता है, तो माता-पिता इस ज्ञान से सांत्वना पा सकते हैं कि आत्मा ने नया शरीर ग्रहण कर लिया है।
कब प्रयोग करें:
जब मृत्यु किसी अपने को छीन ले और आपको यह जानना हो कि आत्मा कहीं गई नहीं है, केवल शरीर बदला है — यह श्लोक शांति देता है।
श्लोक 2.23
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥”
अर्थ:
इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गीला नहीं कर सकता और वायु सुखा नहीं सकती।
व्याख्या:
आत्मा सभी भौतिक तत्वों से परे है, उस पर कोई भौतिक प्रक्रिया असर नहीं डाल सकती।
उदाहरण:
यदि कोई व्यवसाय में भारी नुकसान का शिकार होता है और खुद को असफल मान ले, तो यह श्लोक याद दिलाता है कि उसका असली “स्वरूप” तो अजर-अमर है, सिर्फ बाहरी रूप में असफलता आई है।
कब प्रयोग करें:
कठिन परिस्थितियों, जैसे असफलता, अपमान या नुकसान के समय — यह श्लोक आत्मबल देता है।
श्लोक 2.24
“अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः॥”
अर्थ:
यह आत्मा न काटी जा सकती है, न जलाई जा सकती है, न इसे गीला किया जा सकता है और न सुखाया जा सकता है। यह नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर, अचल और सनातन है।
व्याख्या:
यह श्लोक आत्मा की स्थायित्वता और उसकी सार्वत्रिकता को बताता है। आत्मा न किसी से प्रभावित होती है और न ही उसका कोई नाश है।
उदाहरण:
मान लीजिए कोई व्यक्ति नौकरी खो देता है और खुद को खोया हुआ मानने लगता है — ऐसे समय में यह श्लोक उसे याद दिलाता है कि उसकी आत्मा अचल, स्थिर और सनातन है; परिस्थिति बदलती है, आत्मा नहीं।
कब प्रयोग करें:
जब जीवन में भारी परिवर्तन हो — नौकरी, घर, रिश्ते — तब यह श्लोक हमें आत्मिक संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
श्लोक 2.25
“अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥”
अर्थ:
यह आत्मा अव्यक्त (जिसे देखा नहीं जा सकता), अचिन्त्य (जिसका विचार नहीं किया जा सकता) और अविकारी (जिसमें कोई परिवर्तन नहीं होता) है। इसलिए हे अर्जुन, तुम इसके लिए शोक करने के योग्य नहीं हो।
व्याख्या:
शोक का कारण केवल शरीर के प्रति मोह होता है। आत्मा को समझ लेने के बाद शोक करना तर्कहीन होता है।
उदाहरण:
जब किसी प्रियजन की मृत्यु होती है, तब यह श्लोक हमें यह बोध कराता है कि आत्मा कभी नहीं मरती — इससे शोक का कारण समाप्त हो जाता है।
कब प्रयोग करें:
शोक या दुःख के समय, विशेषकर किसी की मृत्यु या जीवन में हानि के समय, यह श्लोक मानसिक शांति देता है।
श्लोक 2.26
“अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।
तथापि त्वं महाबाहो नैंतं शोचितुमर्हसि॥”
अर्थ:
और यदि तुम आत्मा को बार-बार जन्म लेने वाला या बार-बार मरने वाला मानो, तब भी हे महाबाहो, तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
व्याख्या:
चाहे आत्मा अमर हो (आदर्श दृष्टिकोण) या बार-बार जन्म-मृत्यु को प्राप्त करती हो (सामान्य दृष्टिकोण), दोनों ही स्थितियों में शोक करना अनुचित है।
उदाहरण:
यदि कोई नास्तिक व्यक्ति है जो आत्मा की अमरता को नहीं मानता, तब भी यह श्लोक उसे यह सिखाता है कि बदलाव जीवन का नियम है और शोक समाधान नहीं।
कब प्रयोग करें:
किसी भी विचारधारा से जुड़ा व्यक्ति जब दुःख में हो — यह श्लोक उसे तार्किक दृष्टिकोण से ढाढ़स देता है।
श्लोक 2.27
“जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥”
अर्थ:
जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मरता है उसका जन्म भी निश्चित है। इसलिए, जिसको टाला नहीं जा सकता, उसके लिए शोक करना उचित नहीं है।
व्याख्या:
मृत्यु और जन्म जीवन का शाश्वत नियम हैं। इसे बदलना किसी के वश में नहीं है।
उदाहरण:
अगर कोई वृद्ध माता-पिता का स्वाभाविक निधन हो, तो यह श्लोक हमें सिखाता है कि यह प्रकृति का नियम है — इससे मुक्ति नहीं है।
कब प्रयोग करें:
प्राकृतिक या अपरिहार्य घटनाओं — जैसे मृत्यु, बीमारी या बिछड़ने — पर आत्मा को सांत्वना देने के लिए यह श्लोक अत्यंत उपयोगी है।