किसानों का रोबोट सहायक-
महाराष्ट्र के जलगाँव जिले के एक छोटे से गाँव में रहने वाले 17 वर्षीय आदित्य पिंगाले ने अपने आसपास के किसानों की समस्याओं को करीब से देखा—मजदूरों की कमी, बढ़ती लागत, और पारंपरिक खेती की अक्षमताएँ। उनके पिता, जो एक इलेक्ट्रीशियन हैं, ने उन्हें तकनीकी कौशल सिखाया, लेकिन असली प्रेरणा उन्हें अपने गाँव के किसानों की मेहनत और संघर्ष से मिली। एक दिन, जब उन्होंने देखा कि एक बुजुर्ग किसान पूरे दिन हल चलाकर थक गया है, तो उन्होंने ठान लिया कि वह कम लागत वाला एक ऐसा रोबोट बनाएंगे जो खेती के काम आसान बना सके।
क्या बनाया? “कृषि मित्र” रोबोट
आदित्य ने “कृषि मित्र” नामक एक बहुउद्देशीय रोबोट बनाया, जो निम्नलिखित कार्य कर सकता है:
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जुताई (Ploughing): पुरानी बाइक के इंजन और चेन से बने सिस्टम से मिट्टी की जुताई करता है।
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बीज बोना (Sowing): एक फनल सिस्टम द्वारा बीजों को निश्चित अंतराल पर गिराता है।
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सिंचाई व कीटनाशक छिड़काव (Watering/Spraying): पंप और नोजल की मदद से पानी या कीटनाशक का समान वितरण करता है।
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ऑटोमेटिक नियंत्रण (Control): एक स्वदेशी एंड्रॉइड ऐप के जरिए ब्लूटूथ से संचालित होता है।
खास विशेषताएँ:
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सौर ऊर्जा से चलता है – बिजली की बचत (मात्र ₹5/दिन की लागत)।
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कबाड़ से निर्मित – पुराने साइकल पार्ट्स, PVC पाइप, ट्रैक्टर के अवशेषों से बना।
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किफायती – केवल ₹15,000 की लागत (बाजार के रोबोट्स से 30 गुना सस्ता)।
कैसे बनाया? संघर्ष और सीखने की कहानी
आदित्य के पास न तो कोई फैंसी लैब थी, न ही उच्च तकनीकी ज्ञान। उन्होंने यह सब स्वयं सीखकर और स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके हासिल किया:
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ज्ञान अर्जन:
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YouTube और ऑनलाइन वीडियोज़ देखकर रोबोटिक्स सीखा।
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पुस्तकालय की किताबें पढ़कर इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग की बारीकियाँ समझीं।
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संसाधनों की कमी:
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कबाड़ से जुगाड़: उन्होंने पुराने स्क्रैप यार्ड से बाइक के पुर्जे, पाइप, और मोटरें इकट्ठा कीं।
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फंडिंग की चुनौती: परिवार और शिक्षकों से छोटी-छोटी आर्थिक मदद ली।
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तकनीकी समस्याएँ:
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ब्लूटूथ कनेक्शन फेल होना: कई बार रोबोट काम करना बंद कर देता था, लेकिन उन्होंने कोडिंग ठीक करके इसे दूर किया।
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सौर ऊर्जा का प्रबंधन: बैटरी बार-बार डिस्चार्ज होती थी, लेकिन उन्होंने एक हाइब्रिड सिस्टम बनाया जो सोलर और बैटरी दोनों पर चलता है।
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प्रभाव: किसानों के लिए वरदान
आदित्य का रोबोट सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि ग्रामीण कृषि क्रांति का प्रतीक बन गया:
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श्रम की बचत:
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3-4 मजदूरों का काम अकेले करता है।
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1 एकड़ जमीन रोज जोतता है (मैनुअल खेती से दोगुना)।
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लागत कम, उत्पादन ज्यादा:
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80% पानी और कीटनाशक की बचत (टारगेटेड स्प्रे सिस्टम से)।
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छोटे किसानों के लिए सस्ता विकल्प (₹15,000 vs. ₹5 लाख के कमर्शियल रोबोट)।
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पर्यावरण अनुकूल:
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सोलर पावर से चलने वाला, डीजल/बिजली पर निर्भरता कम।
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किसानों की प्रतिक्रिया:
“यह रोबोट 3 घंटे में वह काम कर देता है जिसमें हमें 2 दिन लगते थे। यह हमारे लिए वरदान है!” – रमेश पाटिल, जलगाँव के किसान।
भविष्य की योजनाएँ और पहचान
आदित्य की इस उपलब्धि को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया:
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राष्ट्रीय नवाचार पुरस्कार (2023)
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महाराष्ट्र युवा वैज्ञानिक पुरस्कार
अब उनकी योजनाएँ और भी बड़ी हैं:
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AI-Enabled Soil Sensor: मिट्टी की गुणवत्ता की रीयल-टाइम जाँच करेगा।
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सस्ते उत्पादन: सरकारी सहायता से 50+ रोबोट/साल बनाने का लक्ष्य।
सीख: आदित्य से प्रेरणा
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संसाधनों की कमी बाधा नहीं: कबाड़ से भी क्रांति लाई जा सकती है।
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स्थानीय समस्याओं का स्थानीय समाधान: उन्होंने महाराष्ट्र के किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर यह रोबोट बनाया।
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सीखने की ललक: बिना डिग्री के भी तकनीकी ज्ञान हासिल किया।
कैसे मदद कर सकते हैं?
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स्क्रैप मटीरियल दान करें (पुराने इलेक्ट्रॉनिक्स, मोटर, सोलर पैनल)।
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क्राउडफंडिंग में योगदान दें (बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए)।
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“अगर एक 17 साल का बच्चा कबाड़ से किसानों का सहायक बना सकता है, तो भारत का हर युवा कुछ भी कर सकता है!”