कलियुग के रक्षक श्रीकृष्ण: क्यों आज भी प्रासंगिक है गोपाल का संदेश?

भगवान विष्णु का आठवाँ अवतार: श्रीकृष्ण अवतार

भगवान विष्णु के दशावतारों में आठवाँ अवतार श्रीकृष्ण का है, जो पूर्ण पुरुषोत्तम और योगेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं। यह अवतार द्वापर युग में अधर्म के प्रतीक कंस के विनाश, धर्म की स्थापना और मानवता को जीवन का उच्चतम दर्शन देने के लिए प्रकट हुआ था। श्रीकृष्ण ने मात्र एक अवतार के रूप में ही नहीं, बल्कि एक राजनीतिज्ञ, योगी, प्रेमी, मित्र, गुरु और संपूर्ण मानव जीवन के आदर्श के रूप में लीला की। महाभारत के युद्ध में उनकी भूमिका और भगवद्गीता का उपदेश मानव सभ्यता को सदैव प्रकाश देता रहेगा।


श्रीकृष्ण अवतार का कारण: कंस के अत्याचार और धर्म की रक्षा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मथुरा का अत्याचारी राजा कंस ने अपनी बहन देवकी और उनके पति वसुदेव को कारागार में डाल दिया था, क्योंकि उसे भविष्यवाणी मिली थी कि देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा। कंस ने देवकी के एक-एक पुत्र को जन्म लेते ही मार डाला। जब भगवान विष्णु ने देखा कि पृथ्वी अधर्म के बोझ से दब रही है, तब उन्होंने आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का अवतार लेने का निर्णय लिया। श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ, किन्तु वसुदेव ने उन्हें रातोंरात गोकुल में नन्द बाबा के घर पहुँचा दिया, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ। इस प्रकार भगवान ने मानवीय रूप में अवतार लेकर अधर्म का अंत और धर्म की स्थापना की।


श्रीकृष्ण ने क्या किया?

1. कंस वध और अत्याचार का अंत 

श्रीकृष्ण ने युवावस्था में मथुरा पहुँचकर कंस के अत्याचारों का अंत किया। यह घटना अनेक चरणों में घटित हुई:

  • चाणूर-मुष्टिक युद्ध: कंस ने कुश्ती के बहाने मल्लयुद्ध आयोजित किया, जहाँ उसने पहलवान चाणूर और मुष्टिक को कृष्ण-बलराम से लड़ने भेजा। श्रीकृष्ण ने चाणूर को और बलराम ने मुष्टिक को मार डाला।

  • कंस का वध: जब कंस ने देखा कि उसके सभी पहलवान मारे गए, तो वह स्वयं तलवार लेकर कृष्ण पर टूट पड़ा। श्रीकृष्ण ने उसे पकड़कर सिंहासन से नीचे फेंका और उसके केश पकड़कर प्रहार किया, जिससे कंस की मृत्यु हो गई।

  • कारागार से मुक्ति: कंस के मरते ही उसके पिता उग्रसेन को पुनः मथुरा का राजा बनाया गया और देवकी-वसुदेव को कारागार से मुक्त किया गया।

  • महत्व: यह घटना सिखाती है कि अत्याचारी चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है। श्रीकृष्ण ने अपने मामा का वध करके यह प्रमाणित किया कि धर्म के लिए रिश्तों से ऊपर उठना पड़ता है।


2. महाभारत युद्ध में मार्गदर्शन 

कुरुक्षेत्र के युद्ध में श्रीकृष्ण की भूमिका अद्वितीय थी:

  • सारथी का दायित्व: श्रीकृष्ण ने स्वयं युद्ध न लड़कर अर्जुन के रथ का संचालन किया, जो सिखाता है कि मार्गदर्शक की भूमिका योद्धा से भी महत्वपूर्ण होती है।

  • गीता उपदेश: जब अर्जुन ने युद्ध से मना किया, तो श्रीकृष्ण ने उसे 700 श्लोकों का ज्ञान दिया, जिसमें प्रमुख सिद्धांत थे:

    • कर्मयोग: निष्काम कर्म का महत्व

    • स्वधर्म: अपने कर्तव्य का पालन

    • आत्मज्ञान: शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है

  • रणनीति: श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान अनेक कूटनीतिक निर्णय लिए, जैसे भीष्म पितामह के सामने शिखंडी को खड़ा करना।

  • महत्व: गीता का ज्ञान आज भी मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक है, विशेषकर निराशा और संकट के समय में।


3. रुक्मिणी हरण और धर्मपूर्ण विवाह 

रुक्मिणी विवाह की घटना में कई महत्वपूर्ण पहलू हैं:

  • रुक्मिणी का संदेश: विदर्भ राजकुमारी रुक्मिणी ने गुप्त रूप से श्रीकृष्ण को पत्र भेजकर उनसे विवाह की याचना की, क्योंकि उसका भाई रुक्मी उसका विवाह शिशुपाल से कराना चाहता था।

  • साहसिक हरण: श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी के स्वयंवर के दिन उसे रथ पर बैठाकर भगा लिया। रुक्मी ने पीछा किया, परन्तु बलराम द्वारा पराजित हुआ।

  • धर्मसंगत विवाह: यह विवाह पूर्णतया धर्मसम्मत था, क्योंकि रुक्मिणी की स्वेच्छा थी और शिशुपाल अधर्मी था।

  • महत्व: यह घटना स्त्री की इच्छा का सम्मान और प्रेम के धार्मिक पक्ष को दर्शाती है। श्रीकृष्ण ने प्रमाणित किया कि जबरन विवाह अधर्म है।


4. द्वारका नगरी की स्थापना 

द्वारका निर्माण एक अद्भुत घटना थी:

  • निर्माण प्रक्रिया: समुद्र देव की सहायता से समुद्र के मध्य एक भव्य नगर का निर्माण किया गया, जिसमें सोने के महल, चौड़ी सड़कें और उन्नत नागरिक सुविधाएँ थीं।

  • विशेषताएँ:

    • 12 योजन लंबी और 8 योजन चौड़ी नगरी

    • 900,000 राजमहलों वाला नगर

    • अत्याधुनिक जल निकास प्रणाली

  • महत्व: द्वारका आदर्श शासन और समृद्धि का प्रतीक बनी। यह सिखाता है कि अच्छा शासन और नागरिक सुविधाएँ प्रजा के लिए आवश्यक हैं।


5. सुदर्शन चक्र का प्रयोग 

सुदर्शन चक्र श्रीकृष्ण का प्रमुख अस्त्र था:

  • प्राप्ति: इसे परशुराम से प्राप्त किया था, जो स्वयं शिव जी से प्राप्त कर चुके थे।

  • प्रयोग के प्रमुख अवसर:

    • शिशुपाल वध: जब शिशुपाल ने 100 अपराध पूरे किए, तो श्रीकृष्ण ने चक्र से उसका सिर काट दिया।

    • शंबरासुर वध: इस राक्षस ने कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का अपहरण किया था।

    • दुर्वासा की रक्षा: दुर्वासा ऋषि को राक्षसों से बचाया।

  • महत्व: सुदर्शन चक्र धर्म की रक्षा का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि अधर्मियों के विनाश के लिए दिव्य शक्तियाँ सदैव तैयार रहती हैं।

श्रीकृष्ण अवतार से मिलने वाली सहायता

  1. भगवद्गीता का ज्ञान
    कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया गया गीता का उपदेश मनुष्य को कर्तव्य, धर्म और जीवन के उद्देश्य का बोध कराता है। यह आज भी विपरीत परिस्थितियों में मार्गदर्शन करता है।

  2. भक्ति मार्ग का प्रसार
    श्रीकृष्ण ने प्रेम और भक्ति के माध्यम से ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाया। उनकी रासलीला और गोपियों की भक्ति भावना की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है।

  3. राजनीतिक कूटनीति
    महाभारत के युद्ध में उनकी भूमिका ने यह सिखाया कि धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी कूटनीति भी आवश्यक होती है।

  4. समाज सुधार
    उन्होंने जातिगत भेदभाव को चुनौती देते हुए विदुर, धोबी और सुदामा जैसे लोगों को सम्मान दिया।


श्रीकृष्ण अवतार से प्राप्त शिक्षाएँ

  1. कर्मयोग का संदेश
    गीता में श्रीकृष्ण ने सिखाया: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” (कर्म करो, फल की चिंता मत करो)। यह शिक्षा आज के तनावपूर्ण जीवन में विशेष प्रासंगिक है।

  2. धर्म के लिए युद्ध
    उन्होंने सिखाया कि अधर्म के विरुद्ध खड़े होना ही सच्चा धर्म है, चाहे युद्ध ही क्यों न करना पड़े।

  3. प्रेम और समर्पण
    गोपियों के प्रति उनका प्रेम भक्ति और समर्पण का शुद्धतम रूप है।

  4. जीवन में संतुलन
    वे एक साथ योगी, राजनीतिज्ञ, प्रेमी और मित्र थे – यह सिखाता है कि जीवन के सभी पहलुओं में संतुलन आवश्यक है।

  5. आत्मज्ञान
    गीता का यह सार है: “आत्मानं विद्धि” (अपने आत्मतत्व को जानो)।


निष्कर्ष: कलियुग में श्रीकृष्ण की प्रासंगिकता

आज के कलियुग में जहाँ अशांति और अधर्म बढ़ रहा है, श्रीकृष्ण का जीवन और गीता का ज्ञान हमें आंतरिक शक्ति और नैतिक साहस प्रदान करता है। उनका कथन “यदा यदा हि धर्मस्य…” आज भी उतना ही सत्य है। श्रीकृष्ण ने सिखाया कि ईश्वर सर्वत्र है और प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान है – बस आँखें खोलने की आवश्यकता है।

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