अमित रॉय, ग्रीन एम्मो के संस्थापक, एक ऐसे सामाजिक उद्यमी हैं जिन्होंने प्लास्टिक कचरे(प्लास्टिक की बोतलों) को टिकाऊ इमारतों में बदलकर पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक विकास का अनूठा मिशन शुरू किया। उनका यह सफर दिखाता है कि एक व्यक्ति की सोच, मेहनत और समर्पण कैसे बड़े बदलाव ला सकते हैं। भारत में पले-बढ़े अमित ने देखा कि प्लास्टिक प्रदूषण एक विकराल समस्या बन चुका है, जबकि गरीब समुदायों में शौचालय और स्कूलों जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। इन दोनों समस्याओं को एक साथ हल करने के लिए उन्होंने ग्रीन एम्मो की स्थापना की—एक ऐसा प्रोजेक्ट जो प्लास्टिक बोतलों को इको-ब्रिक्स में बदलकर शौचालय, कक्षाएं और अन्य जरूरी संरचनाएं बनाता है।
अमित रॉय की यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने महसूस किया कि लाखों प्लास्टिक बोतलें हर दिन कचरे के ढेर में फेंक दी जाती हैं, जबकि इसी प्लास्टिक का इस्तेमाल उन समुदायों की मदद के लिए किया जा सकता है जिनके पास शौचालय और स्कूलों की कमी है। उन्होंने पाया कि अगर प्लास्टिक बोतलों को गैर-नष्ट होने वाले कचरे से भरकर सील कर दिया जाए, तो वे मजबूत “इको-ब्रिक्स” बन जाती हैं, जिनसे दीवारें, छतें और यहां तक कि पूरी इमारतें बनाई जा सकती हैं। यह तकनीक न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छी है, बल्कि पारंपरिक निर्माण सामग्री (जैसे ईंट और सीमेंट) से सस्ती और टिकाऊ भी है।
ग्रीन एम्मो की शुरुआत छोटे प्रयोगों से हुई। अमित ने स्थानीय स्तर पर प्लास्टिक बोतलें इकट्ठा करना शुरू किया और उन्हें कचरे से भरकर इको-ब्रिक्स बनाने का तरीका विकसित किया। इसके बाद, उन्होंने इंजीनियर्स, वास्तुकारों और पर्यावरणविदों के साथ मिलकर इस विचार को और बेहतर बनाया। ग्रीन एम्मो का पहला बड़ा प्रोजेक्ट ग्रामीण और शहरी झुग्गी बस्तियों में शौचालय बनाना था, जहां खुले में शौच एक गंभीर समस्या थी। प्लास्टिक बोतलों से बने ये शौचालय न सिर्फ सस्ते और टिकाऊ थे, बल्कि इन्होंने महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित और स्वच्छ सुविधा भी प्रदान की।
अमित की इस पहल की सबसे खास बात यह थी कि इसमें स्थानीय समुदायों को सीधे जोड़ा गया। ग्रीन एम्मो ने लोगों को प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में जागरूक किया और उन्हें इको-ब्रिक्स बनाने का प्रशिक्षण दिया। स्कूली बच्चों, गृहणियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इससे न सिर्फ लोगों में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की भावना जागी, बल्कि उन्हें रोजगार के अवसर भी मिले।
धीरे-धीरे, ग्रीन एम्मो ने अपने प्रोजेक्ट्स का विस्तार करते हुए सरकारी स्कूलों में कक्षाएं बनाना शुरू किया। गांवों के कई स्कूलों की इमारतें जर्जर हालत में थीं, जहां बारिश में पानी टपकता था और दीवारें गिरने का खतरा रहता था। प्लास्टिक बोतलों से बनी ये कक्षाएं मजबूत, गर्मी और बारिश से सुरक्षित थीं, और इन्होंने बच्चों को बेहतर शिक्षा का माहौल दिया। साथ ही, ये कक्षाएं पर्यावरण बचाने का एक जीता-जागता उदाहरण भी बनीं, जिससे छात्रों को सस्टेनेबिलिटी के बारे में सीखने को मिला।
अमित रॉय ने ग्रीन एम्मो इसलिए शुरू किया क्योंकि वे प्लास्टिक प्रदूषण और सामाजिक असमानता दोनों को खत्म करना चाहते थे। उनका मानना था कि प्लास्टिक कचरा सिर्फ पर्यावरण की समस्या नहीं है, बल्कि यह गरीब तबके को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, जहां कचरा प्रबंधन व्यवस्था नहीं है। वहीं, शौचालय और स्कूलों की कमी लोगों को गरीबी के चक्र में फंसाए रखती है। ग्रीन एम्मो ने इन दोनों समस्याओं का एक साथ समाधान निकाला, जो पर्यावरण के अनुकूल भी था और समाज के लिए फायदेमंद भी।
ग्रीन एम्मो का प्रभाव बहुत बड़ा रहा है। हजारों प्लास्टिक बोतलों को कचरे के ढेर में जाने से बचाकर उनसे सैकड़ों शौचालय और कक्षाएं बनाई गई हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण को फायदा हुआ, बल्कि लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार आया। अमित के इस नवाचार ने भारत ही नहीं, बल्कि अन्य विकासशील देशों में भी प्रेरणा दी है। उनके काम को पर्यावरण संगठनों, सरकारों और अंतरराष्ट्रीय मंचों से सराहना मिली है।
अमित रॉय की कहानी साबित करती है कि छोटी शुरुआत से भी बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। उन्होंने बड़ी कंपनियों या सरकार का इंतजार नहीं किया, बल्कि खुद ही अपने स्तर पर काम शुरू किया। ग्रीन एम्मो का मॉडल दिखाता है कि कचरा भी एक संसाधन हो सकता है, अगर उसे सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। आज भी अमित और उनकी टीम नए-नए तरीकों से प्लास्टिक कचरे को उपयोगी चीजों में बदलने का काम कर रही है।
एक ऐसी दुनिया में जहां प्लास्टिक प्रदूषण और बुनियादी ढांचे की कमी बड़ी चुनौतियां हैं, अमित रॉय का यह प्रयास एक उम्मीद की किरण है। उनका संदेश साफ है—हमारे आसपास फेंका जाने वाला कचरा ही हमारी समस्याओं का समाधान हो सकता है, बस जरूरत है तो सही दृष्टि और मेहनत की। ग्रीन एम्मो की यह यात्रा न सिर्फ पर्यावरण बचाती है, बल्कि समाज को भी मजबूत बनाती है, यह साबित करते हुए कि स्थिरता और प्रगति साथ-साथ चल सकते हैं।